मेहरौली गांव – वकà¥à¤¤ से à¤à¥€ लंबी दासà¥à¤¤à¤¾à¤‚, 8 jun 14
मेहरौली जिसने शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤à¥€ हिंदू राजाओं की राजधानी लालकोट को अपनी जमीन पर देखा, जिसने गà¥à¤²à¤¾à¤®à¥‹à¤‚ के बादशाह बन जाने का अजूबा देखा और देखा सारी बादशाहत को खाक बराबर समà¤à¤¨à¥‡ वाले कà¥à¤¤à¥à¤¬ साहब जैसे दरवेश को. मेहरौली जहां योगमाया के मंदिर तक हिंदू-मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ दोनों की पहà¥à¤‚च है, जहां सेंट जॉन का चरà¥à¤š अपने वासà¥â€à¤¤à¥ में हिंदू और इसà¥â€à¤²à¤¾à¤®à¥€ इमारतों का मिला जà¥à¤²à¤¾ रूप है, जहां सिखों के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ योदà¥à¤§à¤¾ बंदा सिंह बहादà¥à¤° का शहीदी सà¥â€à¤¥à¤² है, जहां कà¥à¤¤à¥à¤¬ साहब की दरगाह सà¤à¥€ कौमों और धरà¥à¤®à¥‹à¤‚ के लोगों को अपनी शांति में डà¥à¤¬à¥‹à¤¤à¥€ है- कौमी à¤à¤•à¤¤à¤¾ की जीवित मिसाल है. मेहरौली à¤à¤• बार आबाद होने के बाद उजड़ी नहीं. सलà¥â€à¤¤à¤¨à¤¤à¥‡à¤‚ और सियासत बदलती रहीं, लेकिन यहां कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ था जिसकी जड़ें सलà¥â€à¤¤à¤¨à¤¤à¥‹à¤‚ से जà¥â€à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ गहरी थीं. यहां वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ और इतिहास आपस में इस तरह गà¥à¤¤à¥â€à¤¥à¤®à¤—à¥à¤¤à¥â€à¤¥à¤¾ हैं कि उनà¥â€à¤¹à¥‡à¤‚ अलग नहीं किया जा सकता. à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• विरासत लोगों के जीवन में घà¥à¤²à¥€-मिली है. शायद इसी तरह पà¥à¤°à¤–े हमारे जरिये जिंदा रहते हैं. यहां मà¥à¤—़लिया सलà¥â€à¤¤à¤¨à¤¤ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनाया गया पहला मकबरा (आदम खान का मकबरा) दिखता है तो मà¥à¤—़लिया सलà¥â€à¤¤à¤¨à¤¤ का आखिरी महल (ज़फर महल) à¤à¥€.
इस विरासतों की सैर (हेरिटेज वॉक) की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ हमने योगमाया मंदिर से की. योगमाया के बारे में मिथक है कि कृषà¥â€à¤£ के जनà¥â€à¤® के समय वासà¥à¤¦à¥‡à¤µ जिस कनà¥â€à¤¯à¤¾ को नंद और यशोदा के घर से ले आये थे वही योगमाया थी. जब कंस ने इस कनà¥â€à¤¯à¤¾ को पटककर मारने की कोशिश की तो वह उड़ गयी और आकर अरावली पर विराजी. à¤à¤¸à¤¾ कहा जाता है कि पांडवों ने यहां पहला मंदिर बनवाया था. 12वीं शताबà¥â€à¤¦à¥€ के जैन गà¥à¤°à¤‚थों में मेहरौली को योगिनीपà¥à¤°à¤¾ के नाम से उलà¥à¤²à¤¿à¤–ित किया गया है. इससे पता चलता है कि उस समय यह महतà¥â€à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ मंदिर रहा होगा. मà¥à¤—ल बादशाह अकबरशाह (दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯) ने इसका जीरà¥à¤£à¥‹à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤° कराया था. फिलहाल मंदिर की इमारत à¤à¤•à¤¦à¤® नयी है. इसके किसी à¤à¥€ हिसà¥â€à¤¸à¥‡ से इसकी पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨à¤¤à¤¾ के सबूत नहीं मिलते.
लोदी इमारतों की शैली में बना आदम खान का विशाल मकबरा हमारा दूसरा पड़ाव था. आदम खान की मां माहम अंगा ने बादशाह अकबर को अपना दूध पिलाया था. इस तरह वह अकबर की दूध मां थी. आदम खान अकबर का चहेता और सेना का जनरल था. उसने किसी विवाद में अकबर के à¤à¤• मंतà¥à¤°à¥€ अतगा खान की हतà¥â€à¤¯à¤¾ कर दी. बादशाह ने आदम खान को आगरा के लाल किले की दीवार से गिराकर मारने की सजा दी. यह घटना अकबर के लिठइतनी महतà¥â€à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ थी कि यह ‘अकबरनामा’ की à¤à¤• मिनियेचर पेंटिंग में चितà¥à¤°à¤¿à¤¤ मिलती है. इस मकबरे ने बहà¥à¤¤ दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¿à¤¨ देखे हैं. लॉरà¥à¤¡ करà¥à¤œà¤¨ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इसे फिर से मकबरा बनाने के पहले यह à¤à¤• अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ अधिकारी का आवास रहा, फिर पà¥à¤²à¤¿à¤¸ सà¥â€à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨, पोसà¥â€à¤Ÿ ऑफिस और रेसà¥â€à¤Ÿ हाउस à¤à¥€ रहा. जाहिर है गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ वकà¥â€à¤¤ ने अपनी खरोंचें मकबरे पर छोड़ी हैं, लेकिन यह उस बादशाह के बारे में जरूर सोचने के लिठमजबूर करता है जिसने नà¥â€à¤¯à¤¾à¤¯ करते वकà¥â€à¤¤ अपने दूध-à¤à¤¾à¤ˆ को à¤à¥€ नहीं बखà¥â€à¤¶à¤¾ लेकिन उसकी याद में विशालकाय मकबरा की तामीर करवाया.
हम कà¥à¤› देर के लिठगंधक की बावली पर à¤à¥€ रà¥à¤•à¥‡. यह सीढ़ीदार पांच मंजिला कà¥à¤‚आ à¤à¤• खास किसà¥â€à¤® के पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤¬à¥‹à¤§ से आपको जोड़ देता है. खà¥â€à¤¼à¤µà¤¾à¤œà¤¾ कà¥à¤¤à¥à¤¬à¥â€à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ बखà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤° काकी के लिठदूसरे गà¥à¤²à¤¾à¤® शासक इलà¥â€à¤¤à¥à¤¤à¤®à¤¿à¤¶ ने इसे बनवाया था और पानी में गंधक की मातà¥à¤°à¤¾ अधिक होने के चलते नाम पड़ गया गंधक की बावली. कई बार उपयोगिता बनवाने वाले के नाम पर à¤à¤¾à¤°à¥€ पड़ जाती है.
हम सिखों के महान सेनानी और शहीद बंदा बहादà¥à¤° के शहीदी सà¥â€à¤¥à¤² पर गये और à¤à¤• कशà¥â€à¤®à¥€à¤°à¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤£ के तंतà¥à¤°-मंतà¥à¤° के उपासक से सिख बनने की कहानी को याद किया. हमने बंदा बहादà¥à¤° के उस निरà¥à¤£à¤¯ को à¤à¥€ याद किया जिसमें जमींदारी पà¥à¤°à¤¥à¤¾ पर रोक लगा दी गई थी और जोतने वालों को जमीन का मालिक बना दिया गया था. बंदा की शहादत को सिख धरà¥à¤® में गरà¥à¤µ से याद किया जाता है.
खà¥â€à¤¼à¤µà¤¾à¤œà¤¾ कà¥à¤¤à¥à¤¬à¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ बखà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤° काकी की दरगाह पर पहà¥à¤‚चना किसी à¤à¥€ बड़े सूफी के मजार पर पहà¥à¤‚चने से à¤à¤•à¤¦à¤® अलग अनà¥à¤à¤µ है. यहां न तो उतनी à¤à¥€à¤¡à¤¼ देखने को मिलेगी न उतनी चहल-पहल. खà¥â€à¤µà¤¾à¤œà¤¾ कà¥à¤¤à¥à¤¬à¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ बखà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤° काकी अजमेर शरीफ के खà¥â€à¤¼à¤µà¤¾à¤œà¤¾ मोइनà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ चिशà¥â€à¤¤à¥€ के मà¥à¤°à¥€à¤¦ थे और उनके बाद चिशà¥â€à¤¤à¥€ सिलसिले के मà¥à¤–िया बने. उनके शिषà¥â€à¤¯ हà¥à¤ बाबा फरीद और बाबा फरीद के शिषà¥â€à¤¯ हà¥à¤ हजरत निजामà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨. यह दरगाह फूलवालों की सैर का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– केनà¥â€à¤¦à¥à¤° होती है. वैसे à¤à¥€ मेहरौली के लगातार बसे रहने के पीछे शायद इस दरगाह का बहà¥à¤¤ बड़ा हाथ है. हिंदà¥à¤¸à¥â€à¤¤à¤¾à¤¨ ही नहीं दूसरे मà¥à¤²à¥â€à¤•à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ लोग यहां अकीदत के लिठआते रहे हैं. अजमेर शरीफ जाने वाले लोग पहले यहां मतà¥â€à¤¥à¤¾ टेकने आते हैं कà¥â€à¤¯à¥‹à¤‚कि खà¥â€à¤¼à¤µà¤¾à¤œà¤¾ मोइनà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ का à¤à¤¸à¤¾ ही हà¥à¤•à¥â€à¤¼à¤® था.
दरगाह से निकलकर हम ज़फर महल पहà¥à¤‚चे. पहà¥à¤‚चना à¤à¥€ कà¥â€à¤¯à¤¾ था हम बगल में ही तो थे. लाल पतà¥â€à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ से बना ज़फर महल का हाथी दरवाजा ढहती मà¥à¤—ल सलà¥â€à¤¤à¤¨à¤¤ का आखिरी ऊंचा निशान है. इसे आखिरी मà¥à¤—ल बादशाह बहादà¥à¤° शाह ज़फर के वालिद अकबर शाह (दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯) ने बनवाया था. ज़फर ने सिरà¥à¤« दरवाजा बनवाया और दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ महल को उनà¥â€à¤¹à¥€à¤‚ के नाम से जानती है. यहां हमने मिरà¥à¤œà¤¾ बाबर की अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ ढंग की कोठी देखने के साथ ही 1857 की पहली जंगे-आज़ादी की कावà¥â€à¤¯à¤¾à¤¤à¥â€à¤®à¤• तà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¦à¥€ से साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥â€à¤•à¤¾à¤° किया. हम उस दो ग़ज जमीन के सामने खड़े थे जिसकी लालसा में आखिरी मà¥à¤—़ल बादशाह ने लिखा था – ‘कितना बदनसीब है ज़फर दफà¥à¤¼à¤¨ के लिà¤/ दो ग़ज जमीन à¤à¥€ न मिली कू-à¤-यार में’. इस तरह दो घंटे में हम हजारों वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ की यातà¥à¤°à¤¾ कर चà¥à¤•à¥‡ थे.
जब à¤à¥€ मैं इन खंडहर हो चà¥à¤•à¥€ इमारतों के पतà¥â€à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ पर हाथ रखता हूं उन मजदूरों और कारीगरों के हाथों महसूस करता हूं जो इनके अनाम निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ हैं, उस à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿, आसà¥â€à¤¥à¤¾ और अकी़दत और à¤à¤¾à¤ˆà¤šà¤¾à¤°à¥‡ का हिसà¥â€à¤¸à¤¾ हो जाता हूं जिसने हमें à¤à¤• समाज के रूप में बने रहने दिया है – बिखरने नहीं दिया है, साथ ही उन शाही à¤à¤¯à¥à¤¯à¤¾à¤¶à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और षडà¥à¤¯à¤‚तà¥à¤°à¥‹à¤‚ का राजदार à¤à¥€ हो जाता हूं जो इन महलों में रची गई होंगी. विरासत रहेगी और हम उसे जानेंगे तà¤à¥€ तो सही गलत की तमीज़ à¤à¥€ सीखेंगे.
(Post by Awadhesh Tripathi & photos by Kanika Singh, team members, Delhi Heritage Walks)